जो मै चाहता हूँ क्या वह हमेशा
हो ही जाता है
शायद नहीं
पर क्यूँ
न जाने
फिर से मै कुछ और
चाहने की जुर्रत कर बैठता हूँ
ऐसा क्यूँ है
शायद यह मेरा अहंकार है
या मेरी अभिलाषा है
या फिर मेरा विश्वाश
कि जो मै चाहता हूँ
वह मुझे मिलेगा
या यह मेरे मन कि चंचलता है
जो मुझसे
यह कहता है
चल कुछ और चाह
कुछ और मांग
शायद वह
पूरी हो जाये
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