Friday, December 17, 2010

अँधेरा मिटाने को
मै बढ़ चला हूँ ,
लिए हाथ में दिया,
हवा भी तेज बह रही है ,
मेरा मन भी डोल रहा है ,
पर हृदय कह रहा है
कोशिश करने में क्या हर्ज है 
सर्दी कि रात है ,
हाथ भी कपकपा रहे हैं ,
पर आँखों में चमक है ,
वे कह रही हैं
मंजिल दिख रही है
अभी बढ़ ही रहा हूँ
पैरों ने जवाब दिया 
फासला कम हो रहा है,
चिंता कि बात नहीं है 
 हम मंजिल पा लेंगे
हाँ अब मै मंजिल प् लूँगा

Monday, December 13, 2010

आज कलम सूख गई

रोज की तरह आज फिर,
कलम उठाई,
सोचा कि कुछ लिखूं
बैठा था कागज को लेकर
मै कलम का सिपाही
 कलम उठाई,
 कलम चली ही नहीं
पता चला कि
आज स्याही ही भ्रष्ट हो गई
कलम ना चली,
क्योंकि
आज कलम सूख गई ?

Monday, December 6, 2010

desh kaise chalta hai

आज भारत माँ शायद रो रही होगी क्यों की  उसकी ही संतानों ने उसे लूटना शुरू कर दिया है , देश में १९५२ के जीप घोटाले से लेकर आज तक अनगिनत घोटाले हो चुके हैं , बोफोर्चे की आग अभी तक ठंढी नहीं हुई थी कि २ जी स्पेक्ट्रम और आदर्श सोसाइटी साथ में कर्णाटक सर्कार में जमीन आवंटन जो अति दुखदाई रहा . उत्तेर प्रदेश में अनाज घोटाला २००७ में ही प्रकाश में आया हाईकोर्ट कि प्रतिक्रिया भी सुनने के लायक थी, क्या देश ऐसे चलता है ?