Tuesday, January 4, 2011

आज मै निशब्द हूँ

आज मै निशब्द हूँ
आज मै स्तब्ध हूँ
आज मै व्यथित भी हूँ
सोच कर विचलित भी हूँ
राजनीति के नंगेपन को मै
पहचान न पाया
इसकी गुणा गणित को मै क्यों
जान न पाया
क्यों कूद गया मै
इस छिछले सागर में
चोटिल होने को  
मेरी अभिलाषा थी या
अहंकार
इसको भी मै जान न पाया
अब घणियाली आंसू
निकालने का कोई मतलब भी
नहीं,
हाय ! जिन्दगी
इतने कटु सत्य से
मै अपने को कैसे
अनजान रख पाया  
यहाँ समाज के  किसी  सिद्धांत को
मैंने लागू होते न पाया
अब मैं समझ चूका हूँ 
दुबारा गलती की
कोई गुंजाईश नहीं 
अब कलम ही मेरी साथी है 
यह ही मेरी दुःखहारी हैं. 

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