Monday, June 13, 2011

महीना आपातकाल चल रहा है

महीना आपातकाल चल रहा है 
अन्ना भी लगे हैं
बाबा भी लगे हैं
क्या इतिहास 
फिर से दुहराया जाने वाला है 
या फिर कुछ नया होने वाला है 
रब तो केवल इक जेपी थे
पर अब तो अन्ना- बाबा दोनों हैं 
मुझे तो चिंता इस देश की लगी है 
आज क्या होगा?
कल क्या होगा?
सारा मामला फ़िल्मी हो चला है
सरकार तो विलेन बन गई है 
बाबा -अन्ना हीरो हैं
अगर कहानी का अंत 
हिंदी फिल्मो की तरह हो
तो अच्छा होगा 
भाई हैप्पी एंडिंग तो 
होनी ही चाहिए .



Sunday, May 8, 2011

माँ लिए तो मेरा हर जनम कम पड़ जायेगा ,

आज माँ का दिन है , पर माँ के लिए केवल एक दीन काफी है क्या ?
माँ के लिए तो दूसरा जनम भी कम पड़  जायेगा, 
यह माँ ही है जिसका प्यार कभी कम नहीं पड़ता है ,
यह माँ ही है जो अपने नालायक बेटे  पर भी प्यार उड़ेलने से भी नहीं चूकती, 
यह माँ ही तो है जिसके प्यार को बांटा नहीं जा सकता है,
यह माँ ही तो है जो भूखी सो सकती है पर औलाद को भूखा नहीं देख सकती है, 
यह माँ ही तो है जो सदा पूज्य नीया, सदा वन्दनीय है, 
यह माँ ही तो है जो औलाद को खुश देख कर अपने सारे दुःख भूल जाती है,
यह माँ ही तो है ....
हाँ यह माँ ही तो है ....
यह मेरी माँ ही है .....
मैं कितना ही बड़ा क्यूँ न हो जाऊं परउसके लिए मई उसका बेटे ही हूँ
जो मेरे लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने दो तैयार है ...
अपना सारा जीवन मेरे लिए समर्पित कर दिया हो जिसने उसके लिए केवल एक दिन ...
उसके लिए तो मेरा हर जनम कम पड़ जायेगा ,

आज माँ का दिन है, पर माँ तो रोज ही याद आती है .
उसके लिए केवल एक दिन से काम तो चलेगा नहीं. 
उसके लिए पूरा जीवन ही कम पड़ जायेगा. 
वह माँ ही तो है , जो जीवन भर अपने नालायक बेटो को भी प्यार देने में कोताही नहीं बरतती है. 
वह माँ ही तो है जो बेटे पर पड़ने वाले सजे कास्ट को खुद पर झेल लेना चाहती है. 
वह माँ ही तो है जो b

Sunday, March 27, 2011

वे याद आते हैं

मौत तो  एकदिन सबको आती है
फिर भी 
 कुछ ऐसे लोग भी होते हैं 
जो जिन्दगी के कोने में 
कुछ  ऐसे काम
कुछ ऐसी वजहें
छोड़ जाते हैं 
जिनकी वजह से 
वे याद आते हैं 
{यह मेरी श्रद्धांजलि है , भगत सिंह , सुखदेव व राजगुरु को जिनका यह राष्ट्र आजीवन ऋणी रहेगा उनके prati कृतज्ञता प्रकट करेगा }

Friday, March 11, 2011

चंचलता

जो मै चाहता हूँ क्या वह हमेशा 
हो ही जाता है 
शायद नहीं 
पर क्यूँ 
न जाने
फिर से मै कुछ और 
चाहने की जुर्रत कर बैठता हूँ
ऐसा क्यूँ है 
शायद यह मेरा अहंकार  है
या मेरी अभिलाषा है 
या फिर मेरा विश्वाश 
कि जो मै चाहता हूँ 
वह मुझे मिलेगा 
या यह मेरे मन कि चंचलता है 
जो मुझसे 
यह कहता है 
चल कुछ और चाह 
कुछ और मांग 
शायद वह 
पूरी हो जाये  

Sunday, March 6, 2011

आज मुझे बचपन याद आया

आज मुझे बचपन याद आया 
वो मिटटी में लोटना 
वो गलियों में घूमना 
निश्चिंत सा
आज मुझे वो सब याद आया
न जाने क्यूँ 
वो दादी का प्यार 
वो दादा का गुस्सा 
वो चाचा की चोकलेट
आज मुझे वो सब याद आया
स्कूल न जाने के वो  लाखों बहाने
वो भैया से झगडा 
न जाने क्यूँ आज मुझे वो सब याद आया

Tuesday, January 4, 2011

आज मै निशब्द हूँ

आज मै निशब्द हूँ
आज मै स्तब्ध हूँ
आज मै व्यथित भी हूँ
सोच कर विचलित भी हूँ
राजनीति के नंगेपन को मै
पहचान न पाया
इसकी गुणा गणित को मै क्यों
जान न पाया
क्यों कूद गया मै
इस छिछले सागर में
चोटिल होने को  
मेरी अभिलाषा थी या
अहंकार
इसको भी मै जान न पाया
अब घणियाली आंसू
निकालने का कोई मतलब भी
नहीं,
हाय ! जिन्दगी
इतने कटु सत्य से
मै अपने को कैसे
अनजान रख पाया  
यहाँ समाज के  किसी  सिद्धांत को
मैंने लागू होते न पाया
अब मैं समझ चूका हूँ 
दुबारा गलती की
कोई गुंजाईश नहीं 
अब कलम ही मेरी साथी है 
यह ही मेरी दुःखहारी हैं.